फ़ॉलोअर

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

कविताकोश योगदानकर्ता मंच के सदस्य धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ कविता

ग़ज़ल

मुहब्बत जो गंगा लहर हो गई
मुहब्बत जो गंगा-लहर हो गई
वो काशी की जैसे सहर हो गई

लगा वक्त इतना तुम्हें राह में
दवा आते आते जहर हो गई

लुटी एक चंचल नदी बाँध से
तो वो सीधी सादी नहर हो गई

चला सारा दिन दूसरों के लिए
जरा सा रुका दोपहर हो गई

समंदर के दिल ने सहा जलजला
तटों पर सुनामी कहर हो गई

जमीं एक अल्हड़ चली गाँव से
शहर ने छुआ तो शहर हो गई

तुझे देख जल भुन गई यूँ ग़ज़ल
हिले हर्फ़ सब, बेबहर हो गई

2 टिप्‍पणियां:

text  selection lock by hindi blog tips