ग़ज़ल
मुहब्बत जो गंगा लहर हो गई
मुहब्बत जो गंगा-लहर हो गई
वो काशी की जैसे सहर हो गई
लगा वक्त इतना तुम्हें राह में
दवा आते आते जहर हो गई
लुटी एक चंचल नदी बाँध से
तो वो सीधी सादी नहर हो गई
चला सारा दिन दूसरों के लिए
जरा सा रुका दोपहर हो गई
समंदर के दिल ने सहा जलजला
तटों पर सुनामी कहर हो गई
जमीं एक अल्हड़ चली गाँव से
शहर ने छुआ तो शहर हो गई
तुझे देख जल भुन गई यूँ ग़ज़ल
हिले हर्फ़ सब, बेबहर हो गई
बहुत खूबसूरत अशआरों से सजी हुई ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंबधाई!
खुबसूरत ग़ज़ल...
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