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सोमवार, 4 जुलाई 2011

पहली कविता

कोष के सर्वशेस्ट योगदानकर्ता श्री अनिल जनविजय जी की कविता


कविता नहीं है यह (कविता)


कविता नहीं है यह
बढ़ती हुई समझ है
एक वर्ग के लोगों में
दूसरे वर्ग के खिलाफ़

कविता नहीं है यह
आँखों में गुनगुना समन्दर है
निरन्तर फैलता हुआ चुपचाप
खौल जाने की तैयारी में

कविता नहीं है यह
बन्द पपड़ाए होंठों की भाषा है
लहराती-झिलमिलाती हुई गतिमान
बाहर आने की तैयारी में

कविता नहीं है यह
चेहरे पर उगती हुई धूप है
तनी हुई धूप
बढ़ती ही जा रही है अन्तहीन

कविता नहीं है यह
छिली हुई चमड़ी की फुसफुसाहट है
कंकरीली धरती पर घिसटते हुए
तेज़ शोर में बदलती हुई

कविता नहीं है यह
पसीना चुआंते शरीर हैं
कुदाल और हल लिए
ज़मीन गोड़ने की तैयारी में

कविता नहीं है यह
मज़दूर के हाथों में हथौड़ा है
भरी हुई बन्दूक का घोड़ा है
कविता नहीं है यह

कविता संग्रह: कविता नहीं है यह से साभार

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