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शनिवार, 17 सितंबर 2011

कविताकोश में मेरी दो हजारी यात्रा


कविताकोश में मेरी यात्रा 6 जनवरी 2011 को प्रारंभ हुयी जब मैं पहली बार इस कोश से जुड़ा था। वास्तव में 5 जनवरी 2011 को मेरे जन्मदिवस के अवसर पर मेरे एक साहित्यिक मित्र ने मुझे इसके बारे में बताया। मुझे इस कोश का प्रारूप बडा आकर्षक लगा सो मैं तत्काल इससे जुड गया। आज इस कोश में दो हजारी यात्रा पूरी होने पर इच्छा हुयी कि यात्रा आरंभ करने से लेकर आज तक के पड़ावों केा लिपि बद्ध करू।
इस कोश में प्रारंभ मे मुझे रचना जोडने के लिये कविता कोश के उस लेख का सहारा लेना पडा जिसमें रचनाएँ जोड़ने का तरीका अंकित था। उस लेख को पढ़कर लगा कि शायद मैं भी अपना नाम इस कोश में अपना नाम और रचनाएँ आसानी से जोड सकता हूँ।






तब तक मुझे कम्प्यूटर के यूनीकोड फॉन्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं थी सो पृष्ठ में सारे परिवर्तन अंग्रेजी के न्यू टाइम्स रोमन फाँन्ट में किये। सबसे आश्चर्यजनक बात यह रही कि सबसे पहले मैने पहली उत्तराखंड के कालिदास कहे जाने वाले सर्व श्री चंद्र कुँवर बर्तवाल के पृष्ठ में कुछ प्रारंभिक संशोधन इसी न्यू टाइम्स फांन्ट में किये । किये गये परिवर्तनों को सुरक्षित करने के बाद ये उसी तरह अंग्रेजी फाँन्ट में ही प्रदर्शित हुये परन्तु अगले दिन पुनः कंप्यूटर पर इसे देखा तो वे यूनीकोड में प्रदर्शित हो रहे थे, यह मेरी मूर्खता थी कि मुझे यह आभास हुआ कि शायद इसमें ये फाँन्ट परिवर्तन स्वतः हो जाता होगा जबकि मेरे द्वारा किये गये सभी परिवर्तनों पर आदरणीय श्री अनिल जनविजय जी पैनी नजर रखते थे और उसकी वर्तनी शुद्ध कर देते थे(यह बात मैं बहुत बाद में जान सका)। अब मैने कुछ और पृष्ठ भी इसी प्रकार रोमन भाषा में अंकित किये तो वे भी अगले दिन वे पुनः यूनीकोड में प्रदर्शित होने लगे । अब मुझे थोड़ी शैतानी सूझी मैने रचनाकरों की सूची में ऐसे रचनाकार चिंह्नित किये जिनमें उनके नाम के अतिरिक्त और कुछ भी प्रदर्शित नही था। ऐसे ही एक रचनाकार का नाम मुझे सूझा सर्वश्री अशोक शर्मा जी का ।


अपने छात्र जीवन में उत्तराखंड के पहाड़ों पर शुक्ला जाति की पहचान नहीं होने के कारण अपनी कुछ रचनाएँ मैने बालपन में अशोक शर्मा के नाम से भी लिखीं थीं सो इस पृष्ठ को अपने पृष्ठ के रूप में विकसित करने की सोची। पहला परिवर्तन नाम में अशोक शर्मा के स्थान पर अशोकShukla लिखकर किया और उसके बाद परिचय और रचनायें जोडने की कोशिश में इस पृष्ठ पर चन्द्रकुँवर बर्तवाल की रचनायें और परिचय जुड गया ।
अब मेरी समझ में न आया कि क्या करूं तो श्री अनिल जी को मेल किया कि क्या करूं। आदरणीय अनिल जी ने सचमुच एक गुरू की मानिंद रचनाऐं जोडने से संबंधित एक एक पद के संबंध में आवश्यक जानकारी दी और यह भी कहा कि मैं रचनाएँ उन्हें भेज दूँ वे स्वयं ही उन्हें जोड देंगे।

मैने आदरणीय अनिल जी को रचनाओं के संबंध मे जो पहला मेल किया वह उत्तराखंड के कालिदास कहे जाने वाले सर्व श्री चंद्र कुँवर बर्तवाल की रचनाओं का था जिन्हें आदरणीय अनिल जी द्वारा कोश में जोडा गया । इसके उपरांत अपनी गृहजनपद सीतापुर के सर्वश्री नरोत्तमदास जी की रचना सुदामा चरित का संम्पूर्ण भाग भेजा जिसे भी आदरणीय अनिल जी द्वारा इसे नरोत्तमदास जी के पृष्ठ पर जोड दिया।


इस प्रकार आदरणीय अनिल जी के साथ संवाद का सिलसिला आरंभ हुआ तो फिर धीरे धीरे मैं स्वयं ही रचनाएँ जोडना सीख गया और उत्तरोत्तर रचनायें जोड़ता हुआ इससे जुडने के 126 वें दिन 9 मई 2011 को 1001 पृष्ठ जोड़ सका।
मैने अति उत्साह में इस सूचना को सबसे पहले अपने परिचय के पृष्ठ पर प्रदर्शित किया और जोडी गयी रचनाओं का ब्यौरा भी जोड दिया। इस पर संपादन की कैंची भी चली परन्तु मेरे उत्साह में कोई कमी नहीं आयी।


शुरूआत में कुछ गलतियाँ हुयीं और फिर एक दिन ऐसा भी आया जब मेरा नाम मासिक योगदानकर्ताओं की सूची में सबसे उपर दिखाई पड़ा। यह दिन भी मेरे लिये सम्मान का ही दिन था क्यांकि कोश के मुखपृष्ठ पर ही सही आदरणीय अनिल जी और कविताकोश के संस्थापक के साथ आकर खड़े होने का अवसर जो मिल सका था।




इस प्रकार यह यात्रा लगातार जारी रही और इसी बीच मेरा नाम योगदानकर्ताओं के अतिरिक्त रचनाकारों के साथ भी शामिल किया गया। 7 अगस्त 2011 को जयपुर में कविताकोश के पाँच वर्ष पूरे होने पर आयोजित प्रथम कविताकोश सम्मान समारोह में मेरे योगदान की भी सराहना की गयी।
इस यात्रा में आज 16 सितम्बर 2011 को इसमें एक और महत्वपूर्ण पडाव जुड गया है जब कविताकोश से जुडे हुये मुझे पूरे 250 दिन हो गये है। इसके साथ ही आज मेरे योगदान की संख्या भी 2000 का आंकडा पार कर गयी है। इसके साथ कविताकोश में दो हजार की संख्या जोडने वाले योगदानकर्ताओ की सूची में मै पांचवें योगदानकर्ता के रूप में सम्मिलित हो गया हूँ। आशा करता हूँ कि आगे आने वाले समय में इस कोश हेतु और अधिक सक्रियता से योगदान कर सकूँगा।

1 टिप्पणी:

  1. निश्चय ही कविताकोश में आपका योगदान उल्लेखनीय़ है ! आपके इस उत्साहपूर्ण कार्य से हम सबका मनोबल भी बना रहेगा !
    आभार ।

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