उन्हें समर्पित जिन्होंने अंतरजाल पर हिन्दी साहित्य के हजारों पन्नों को जोडा है
सोमवार, 8 अगस्त 2011
आभार...... कविताकोश !!
3 अगस्त 2011 का दिन मेरे लिये उत्साह का दिन था। अपना मेल बाक्स देख रहा था कि कविताकोश के संस्थापक ललित कुमार जी का मेल मिला लिखा था 7 अगस्त 2011 को जयपुर में कविकाकोश सम्मान समारोह 2011 में मुझे सम्मानित अतिथि के रूप में सम्मिलित होने के लिये आमंत्रित किया गया था। यूँ तो कविताकोश सम्मान समारोह 2011 में सम्मिलित होने संबंधी औपचारिक मेल काफी पहले आ गया था परन्तु इस मेल में मेरे लिये लक्ष्मी विलास होटल आरक्षित कक्ष तथा वाहन आदि का विवरण था। जयपुर मेरा पसंदीदा शहर है । मेरा छोटा भाई संजय जो साफ्टवेयर इंजीनियर है सपरिवार वहीं रहता है। संजय अक्सर लखनऊ आ जाता है परन्तु यह शिकायत करना नहीं भूलता कि दद्दा जी (वह मुझे इसी नाम से संबोधित करता है ) को तो जयपुर आने की फुरसत ही नहीं मिलती। कविताकोश के सौजन्य से मिले इस अवसर को मैं संजय की शिकायत का निराकरण करने के रूप में उपयोगी पाकर उत्साहित हो गया।
कविताकोश सम्मान समारोह 2011 में हिंदी के दो वरिष्ठ कवि सर्वश्री नरेश सक्सेना जी तथा सर्वश्री बल्ली सिंह चीमा जी के अतिरिक्त पाँच नवोदित कवियों को ‘कविताकोश सम्मान 2011’ से सम्मानित किया जाना था। इन कवियों को यह सम्मान प्रदान करने के लिये कविताकोश की प्रशासक सुश्री प्रतिष्ठा जी अमेरिका से तथा संपादा थी अनिल जनविजय जी मास्को से आने वाले थे, सिंगापुर की युवा गजलकारा सुश्री श्रद्धा जैन जी भी नवोदित कवियों की श्रेणी में सम्मानित की जाने वाली थीं।
मैं जयपुर पहुँचकर अपने भाई संजय तथा देश विदेश के सुदूरवर्ती भागों से एकत्रित होने वाले अनेक विद्धजनों से मिलने को लेकर उत्साहित था। परन्तु मेरा उत्साह 5 अगस्त को क्षीण पड गया जब अचानक 5 अगस्त शुक्रवार को साँयः जब यह सूचना मिली कि उत्तर प्रदेश के माननीय राजस्व मंत्री जी रविवार 7 अगस्त को 11 बजे प्रदेश के समस्त जिला स्तरीय प्रशासनिक अधिकारियों की बैठक लेना चाहते हैं। मैं राजस्व परिषद निदेशालय में तैनात होने के कारण इस बैठक में प्रतिभाग को टाल नही सकता था। (राजकीय सेवारत अधिकारी मेरी इस बाध्यता को बखूबी समझ सकते हैं।)
मैने जयपुर में संजय को फोन कर स्थिति से अवगत कराया तो उसकी स्वाभाविक सी प्रतिक्रिया थी। ‘मुझे तो मालूम ही था दद्दा जी ! आखिर आपको यहाँ आने की फुरसत कहाँ?’
मै निरूत्तर था। खैर..! मैने संजय से अनुरोध किया कि वह समारोह में पहुँचकर मेरी विवशता से अवगत करा दे।
संजय संभवतः मेरी विवशता को बहुत अच्छी तरह समझा और उसेने वैसा ही किया। वह कविताकोश सम्मान समारोह 2011 के आयोजन स्थल कृष्णायन सभागार, जवाहर कला केन्द्र पर सबसे पहले पहुँचने वालों मे था। वहाँ पहुँचकर उसे शायद मेरी मनोदशा की और गहराई से भाँपा हो सो उसने आयोजन स्थल के प्रवेशद्वार से लेकर आयोजन की प्ररंभिक तैयारियों आदि के फोटोग्राफ अपने मोबाइल से लेते हुये मुझे भेजना आरंभ किया। ठीक ग्यारह बजे यहाँ लखनऊ में माननीय राजस्व मंत्री जी की बैठक प्रारंभ हुयी और वहाँ जयपुर में सम्मान समारोह।
हाँलांकि इस सम्मान समारोह का सीधा प्रसारण इंडिया टीवी पर भी आ रहा था परन्तु राजकीय बैठक में प्रतिभाग कर रहे मुझ जैसे ब्यक्ति के लिये यह तत्सतय अनुपयोगी था। ऐसी स्थिति मेे प्रत्येक पाँच मिनट के अंदर संजय के भेजे दो ऐक फोटोग्राफ मेल पर आ जाना सचमुच कार्यक्रम के लाइव कवरेज जैसा था।
मै भौतिक रूप से तो माननीय राजस्व मंत्री जी की बैठक में था परन्तु साइलेन्ट प्रोफाइल के मोबाइल के माध्यम से जयपुर में था (इस घृष्टता के लिये बैठक में उपस्थित सभी उच्च अधिकारियों से क्षमा चाहूँगा)। संजय के मेल लगातार आ रहे थे ’ तथा ‘ही इज ललित’ जैसे छोटे छोटे वाक्यांश लिखे हुये मेल फोटो के अटैचमेंन्ट के साथ। मै चुपचाप उन्हे पढकर सम्मान समारोह का लाइव आनंद उठा रहा था । लगभग 1 बजे कुछ देर के लिये संजय के मेल आना रूका रहा । मुझे लगा शायद महत्वपूर्ण न होने के कारण अब संजय मेल नहीं भेज रहा हैं। लेकिन थोडी ही देर में ‘योर एप्रिशिएशन लैटर’ तथा ‘योर बैच..’ वाक्यांश लिखे मेल आये जिनके अटैचमेन्ट खोलने पर पता चला कविताकोश टीम ने इस कोश में किये गये मेरे योगदान को भी सम्मानित किया है।
संजय की ओर से मेल आने का यह सिलसिला तीन बजे तक चला और यहाँ माननीय मंत्री जी की बैठक लगभग चार बजे तक चली। मंत्री जी के जाने के बाद मैने संजय को फोन लगाया और कहाः-
‘थैक्स ! संजय! तुमने तो पूरी इवेन्ट ही लाइव कवर कर दी। तुम्हे साफ्टवेयर इंन्जीनियर नहींे जर्ननलिस्ट होना चाहिये था।’
संजय ने जवाब दियाः-
‘थैक्स तो कविताकोश को कहिये दद्दा जी! और हाँ! आपसे दावत लेने के लिये तो मुझे ही लखनऊ ही आना पडेगा। आप तो यहाँ आने से रहे।’ संजय के शब्द सुनकर मैं राजकीय कर्मचारी की विवशता के वारे में विचार करने लगा।
आभार ....कविताकोश!! जिसने बेडियों से जकड़े एक राजकीय सेवक के रचनात्मक कार्यो को मान्यता प्रदान की।
संजय की ओर से मेल आने का यह सिलसिला तीन बजे तक चला और यहाँ माननीय मंत्री जी की बैठक लगभग चार बजे तक चली। मंत्री जी के जाने के बाद मैने संजय को फोन लगाया और कहाः-
‘थैक्स ! संजय! तुमने तो पूरी इवेन्ट ही लाइव कवर कर दी। तुम्हे साफ्टवेयर इंन्जीनियर नहींे जर्ननलिस्ट होना चाहिये था।’
संजय ने जवाब दियाः-
‘थैक्स तो कविताकोश को कहिये दद्दा जी! और हाँ! आपसे दावत लेने के लिये तो मुझे ही लखनऊ ही आना पडेगा। आप तो यहाँ आने से रहे।’ संजय के शब्द सुनकर मैं राजकीय कर्मचारी की विवशता के वारे में विचार करने लगा।
आभार ....कविताकोश!! जिसने बेडियों से जकड़े एक राजकीय सेवक के रचनात्मक कार्यो को मान्यता प्रदान की।
आभार ....संजय !! सचमुच मैने अपने छोटे भाई संजय की आंखों से कविता कोष सम्मान समारोह को देखा
आभार ....संजय !! सचमुच मैने अपने छोटे भाई संजय की आंखों से कविता कोष सम्मान समारोह को देखा
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wow Ashok ji.. aapne bahut achcha lekh post kiya hai.. and Thanks to Sanjay ji.. jinki aankhon se hamne kavitakosh ka program dekha..
जवाब देंहटाएंNice .
जवाब देंहटाएंदेखिये
हुमायूं और रानी कर्मावती का क़िस्सा और राखी का मर्म